patrakarita ke gun
आज ‘पत्रकारिता’ शब्द हमारे लिए कोई नया शब्द नहीं है। सुबह होते ही हमें अखबार की आवश्यकता होती है, फिर सारे दिन रेडियो, दूरदर्शन, इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से समाचार प्राप्त करते रहते हैं। साथ ही साथ रेडियो, टीवी और सोशल मीडिया सुबह से लेकर रात तक हमारे मनोरंजन के अतिरिक्त अन्य कई जानकारियों से परिचित कराते हैं। इसके साथ ही विज्ञापन ने हमें उपभोक्ता संस्कृति से जोड़ दिया है। कुल मिलाकर पत्रकारिता के विभिन्न माध्यम जैसे समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, सोशल मीडिया ने व्यक्ति से लेकर समूह तक और देश से लेकर सारे विश्व को एकसूत्र में बांध दिया है। इसके परिणाम स्वरूप पत्रकारिता आज राष्ट्रीय स्तर पर विचार, अर्थ, राजनीति और यहाँ तक कि संस्कृति को भी प्रभावित करने में सक्षम हो गई है। तो आइए पत्रकारिता के अर्थ, परिभाषा और क्षेत्र के बारे में विस्तार से जानें।
पत्रकारिता का अर्थ Patrakarita Ka Arth
अपने रोजमर्रा के जीवन की स्थिति के बारे में थोड़ा गौर कीजिए। दो लोग आसपास रहते हैं और कभी बाजार में, कभी राह चलते और कभी एक-दूसरे के घर पर रोज मिलते हैं। आपस में जब वार्तालाप करते हैं उनका पहला सवाल क्या होता है? उनका पहला सवाल होता है क्या हालचाल है? या कैसे हैं? या क्या समाचार है? रोजमर्रा के ऐसे सहज प्रश्नों में कोई खास बात नहीं दिखाई देती है लेकिन इस पर थोड़ा विचार किया जाए तो पता चलता है कि इस प्रश्न में एक इच्छा या जिज्ञासा दिखाई देगी और वह है नया और ताजा समाचार जानने की। वे दोनों पिछले कुछ घंटे या कल रात से आज के बीच में आए बदलाव या हाल की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपने मित्रों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों और सहकर्मियों से हमेशा उनकी आसपास की घटनाओं के बारे में जानना चाहते हैं। मनुष्य का सहज प्रवृत्ति है कि वह अपने आसपास की चीजों, घटनाओं और लोगें के बारे में ताजा जानकारी रखना चाहता है। उसमें जिज्ञासा का भाव प्रबल होता है। यही जिज्ञासा समाचार और व्यापक अर्थ में पत्रकारिता का मूल तत्व है। जिज्ञासा नहीं रहेगी तो समाचार की जरूरत नहीं रहेगी। पत्रकारिता का विकास इसी जिज्ञासा को शांत करने के प्रयास के रूप में हुआ है जो आज भी अपने मूल सिद्धांत के आधार पर काम करती आ रही है।
इस जिज्ञासा से हमें अपने पास-पड़ोस, शहर, राज्य और देश दुनिया के बारे में बहुत कुछ सूचनाएँ प्राप्त होती है। ये सूचनाएँ हमारे दैनिक जीवन के साथ साथ पूरे समाज को प्रभावित करती हैं। ये सूचनाएँ हमारा अगला कदम क्या होगा तय करने में सहायता करती है। यही कारण है कि आधुनिक समाज में सूचना और संचार माध्यमों का महत्व बहुत बढ़ गया है। आज देश दुनिया में क्या घटित हो रहा है उसकी अधिकांश जानकारियाँ हमें समाचार माध्यमों से मिलती है।
विभिन्न समाचार माध्यमों के जरिए दुनियाभर के समाचार हमारे घरों तक पहुँचते हैं चाहे वह समाचार पत्र हो या टेलीविजन और रोडियो या इंटरनेट या सोशल मीडिया। समाचार संगठनों में काम करनेवाले पत्रकार देश-दुनिया में घटनेवाली घटनाओं को समाचार के रूप में परिवर्तित कर हम तक पहुँचाते हैं। इसके लिए वे रोज सूचनाओं का संकलन करते हैं और उन्हें समाचार के प्रारूप में ढालकर पेश करते हैं। इस पूरी प्रक्रिया को ही ‘पत्रकारिता’ कहते हैं।
व्यक्ति को, समाज को, देश-दुनिया को प्रभावित करनेवाली हर सूचना समाचार है। यानी कि किसी घटना की रिपोर्ट ही ‘समाचार’ है। या यूँ कहें कि समाचार जल्दी में लिखा गया इतिहास होता है।
पत्रकारिता शब्द अंग्रेजी के ‘जर्नलिज्म’ का हिन्दी रूपांतर है। शब्दार्थ की दृष्टि से ‘जर्नलिज्म’ शब्द ‘जर्नल’ से निर्मित है और इसका अर्थ है ‘दैनिकी’, ‘दैनन्दिनी’, ‘रोजनामचा’ अर्थात जिसमें दैनिक कार्य़ों का विवरण हो। आज जर्नल शब्द ‘मैगजीन’, ‘समाचार पत्र’, ‘दैनिक अखबार’ का द्योतक हो गया है। ‘जर्नलिज्म’ यानी पत्रकारिता का अर्थ समाचार पत्र, पत्रिका से जुड़ा व्यवसाय, समाचार संकलन, लेखन, संपादन, प्रस्तुतीकरण, वितरण आदि होगा। आज के युग में पत्रकारिता के अभी अनेक माध्यम हो गये हैं, जैसे-अखबार, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन, वेब-पत्रकारिता, सोशल मीडिया, इंटरनेट आदि।
हिंदी में भी पत्रकारिता का अर्थ भी लगभग यही है। ‘पत्र’ से ‘पत्रकार’ और फिर ‘पत्रकारिता’ से इसे समझा जा सकता है। वृहत हिंदी शब्दकोश के अनुसार ‘पत्र’ का अर्थ चिट्ठी, कागज, वह कागज जिस पर कोई बात लिखी या छपी हो, वह कागज या धातु की पट्टी जिस पर किसी व्यवहार के विषय में कोई प्रामाणिक लेख लिखा या खुदवाया गया हो(दानपत्र, ताम्रपत्र), किसी व्यवहार या घटना के विषय का प्रमाण रूप लेख(पट्टा, दस्तावेज), यान, वाहन, समाचार पत्र, अखबार है। ‘पत्रकार’ का अर्थ समाचार पत्र का संपादक या लेखक। और ‘पत्रकारिता’ का अर्थ पत्रकार का काम या पेशा, समाचार के संपादन, समाचार इकट्ठे करने आदि का विवेचन करनेवाली विद्या। वृहत शब्दकोश में साफ है कि पत्र का अर्थ वह कागज या साधन जिस पर कोई बात लिखी या छपी हो जो प्रामाणिक हो, जो किसी घटना के विषय को प्रमाण रूप पेश करता है। और पत्रकार का अर्थ उस पत्र, कागज को लिखनेवाला, संपादन करनेवाला। और पत्रकारिता का अर्थ उसका विवेचन करनेवाली विद्या।
उल्लेखनीय है कि इन सभी माध्यमों से संदेश या सूचना का प्रसार एक तरफा होता है। सूचना के प्राप्तकर्ता से इनका फीडबैक नहीं के बराबर है। यानी सभी माध्यमों में प्रचारक या प्रसारक के संदेश प्राप्तकर्ता में दोहरा संपर्क नहीं स्थापित कर पाते हैं। प्राप्तकर्ता से मिलनेवाली प्रतिक्रिया, चिट्ठियों आदि के माध्यम से संपर्क नहीं के बराबर है। पिछले कुछ सालों में जनसंचार के अत्याधुनिक पद्धतियों के प्रचलन से दोहरा संपर्क रखा जाने लगा है।
पत्रकारिता की परिभाषा Patrakarita ki Paribhasha
किसी घटना की रिपोर्ट समाचार है जो व्यक्ति, समाज एवं देश दुनिया को प्रभावित करती है। इसके साथ ही इसका उपरोक्त से सीधा संबंध होता है। इस कर्म से जुड़े मर्मज्ञ विभिन्न मनीषियों द्वारा पत्रकारिता को अलग-अलग शब्दों में परिभाषित किया गया है। पत्रकारिता के स्वरूप को समझने के लिए यहाँ कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाओं का उल्लेख किया जा रहा है।
(क) पाश्चात्य चिंतन
1. न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी :
प्रकाशन, संपादन, लेखन एवं प्रसारणयुक्त समाचार माध्यम का व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।
2. विल्वर श्रम :
जनसंचार माध्यम दुनिया का नक्शा बदल सकता है।
3. सी.जी. मूलर :
सामयिक ज्ञान का व्यवसाय ही पत्रकारिता है। इसमें तथ्यों की प्राप्ति, उनका मूल्यांकन एवं ठीक-ठाक प्रस्तुतीकरण होता है।
4. जेम्स मैकडोनल्ड :
पत्रकारिता को मैं रणभूमि से ज्यादा बड़ी चीज समझता हूँ। यह कोई पेशा नहीं वरन पेशे से ऊँची कोई चीज है। यह एक जीवन है, जिसे मैंने अपने को स्वेच्छापूर्वक समर्पित किया।
5. विखेम स्टीड :
मैं समझता हूँ कि पत्रकारिता कला भी है, वृत्ति भी और जनसेवा भी । जब कोई यह नहीं समझता कि मेरा कर्तव्य अपने पत्र के द्वारा लोगों का ज्ञान बढ़ाना, उनका मार्गदर्शन करना है, तब तक उसे पत्रकारिता की चाहे जितनी ट्रेनिंग दी जाए, वह पूर्ण रूपेण पत्रकार नहीं बन सकता।
इस प्रकार न्यू वेबस्टर्स डिक्शनरी में उस माध्यम को जिसमें समाचार का प्रकाशन, संपादन एवं प्रसारण विषय से संबंधित को पत्रकारिता कहा गया है। विल्वर श्रम का कहना है कि जनसंचार माध्यम उसे कहा जा सकता है जो व्यक्ति से लेकर समूह तक और देश से लेकर विश्व तक को विचार, अर्थ, राजनीति और यहाँ तक कि संस्कृति को भी प्रभावित करने में सक्षम है। सीजी मूलर ने तथ्य एवं उसका मूल्यांकन के प्रस्तुतीकरण और सामयिक ज्ञान से जुड़े व्यापार को पत्रकारिता के दायरे में रखते हैं। जेम्स मैकडोनल्ड के विचार अनुसार पत्रकारिता दर्शन है जिसकी क्षमता युद्ध से भी ताकवर है। विखेम स्टीड पत्रकारिता को कला, पेशा और जनसेवा का संगम मानते हैं।
(ख) भारतीय चिंतन
1. हिंदी शब्द सागर :
पत्रकार का काम या व्यवसाय ही पत्रकारिता है ।
2. डॉ. अर्जुन तिवारी :
ज्ञान और विचारों को समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारों के कार्य़ों, कर्तव्यों और लक्ष्यों का विवेचन होता है। पत्रकारिता समय के साथ साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है।
3. रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर :
ज्ञान और विचार शब्दों तथा चित्रों के रूप में दूसरे तक पहुँचाना ही पत्रकला है। छपने वाले लेख-समाचार तैयार करना ही पत्रकारी नहीं है । आकर्षक शीर्षक देना, पृष्ठों का आकर्षक बनाव-ठनाव, जल्दी से जल्दी समाचार देने की त्वरा, देश-विदेश के प्रमुख उद्योग-धंधों के विज्ञापन प्राप्त करने की चतुराई, सुंदर छपाई और पाठक के हाथ में सबसे जल्दी पत्र पहुँचा देने की त्वरा, ये सब पत्रकार कला के अंतर्गत रखे गए।
4. डॉ.बद्रीनाथ कपूर :
पत्रकारिता पत्र-पत्रिकाओं के लिए समाचार लेख आदि एकत्रित करने, संपादित करने, प्रकाशन आदेश देने का कार्य है ।
5. डॉ. शंकर दयाल शर्मा :
पत्रकारिता एक पेशा नहीं है बल्कि यह तो जनता की सेवा का माध्यम है । पत्रकारों को केवल घटनाओं का विवरण ही पेश नहीं करना चाहिए, आम जनता के सामने उसका विश्लेषण भी करना चाहिए। पत्रकारों पर लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करने और शांति एवं भाईचारा बनाए रखने की भी जिम्मेदारी आती है ।
6. इन्द्र विद्यावाचस्पति :
पत्रकारिता पाँचवां वेद है, जिसके द्वारा हम ज्ञान-विज्ञान संबंधी बातों को जानकर अपना बंद मस्तिष्क खोलते हैं ।
हिंदी शब्द सागर में पत्रकार के कार्य एवं उससे जुड़े व्यवसाय को पत्रकारिता कहा गया है। डॉ. अर्जुन तिवारी के अनुसार ज्ञान और विचार को कलात्मक ढंग से लोगों तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह समाज का मार्गदर्शन भी करता है। इससे जुड़े कार्य का तात्विक विवेचन करना ही पत्रकारिता विद्या है। रामकृष्ण रघुनाथ खाडिलकर मानते हैं कि यह एक कला है जिसके माध्यम से पत्रकार ज्ञान और विचारों को शब्द एवं चित्रों के माध्यम से आकर्षक ढंग से प्रस्तुत करता है। डॉ.बद्रीनाथ कपूर का कहना है कि समाचार माध्यमों के लिए किए जानेवाले कार्य समाचार संकलन, लेखन एवं संपादन, प्रकाशन कार्य ही पत्रकारिता है। डॉ.शंकर दयाल शर्मा मानते हैं कि यह सेवा का माध्यम है। यह एक ऐसी सेवा है जो घटनाओं का विश्लेषण करके लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा करने के साथ ही शांति एवं भाईचारा कायम रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करती है। इंद्र विद्यावाचस्पति का मानना है कि पत्रकारिता वेदों की तरह है जो ज्ञान-विज्ञान के जरिए लोगों की मस्तिष्क को खोलने में काम करता है। इन सभी परिभाषाओं के आधार पर पत्रकारिता को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है :-
यह एक ऐसा कलात्मक सेवा कार्य है जिसमें सामयिक घटनाओं को शब्द एवं चित्र के माध्यम से जन जन तक आकर्षक ढंग से पेश किया गया हो और जो व्यक्ति से लेकर समूह तक और देश से लेकर विश्व तक के विचार, अर्थ, राजनीति और यहाँ तक कि संस्कृति को भी प्रभावित करने में सक्षम हो। उस कला का विवेचन ही पत्रकारिता है।
पत्रकारिता के मूल्य Patrakarita ke Mulya
चूंकि यह एक ऐसा कलात्मक सेवा कार्य है जिसमें सामयिक घटनाओं को शब्द एवं चित्र के माध्यम से पत्रकार रोज दर्ज करते चलते हैं तो इसे एक तरह से दैनिक इतिहास लेखन कहा जाएगा। यह काम ऊपरी तौर पर बहुत आसान लगता है लेकिन यह इतना आसान होता नहीं है। अपनी पूरी स्वतंत्रता के बावजूद पत्रकारिता सामाजिक और नैतिक मूल्यों से जुड़ी रहती है। उदाहरण के लिए सांप्रदायिक दंगों का समाचार लिखते समय पत्रकार प्रयास करता है कि उसके समाचार से आग न भड़के। वह सच्चाई जानते हुए भी दंगों में मारे गए या घायल लोगों के समुदाय की पहचान नहीं करता। बलात्कार के मामलों में वह महिला का नाम या चित्र नहीं प्रकाशित करता है ताकि उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा को कोई धक्का न पहुँचे। पत्रकारों से अपेक्षा की जाती है कि वे पत्रकारिता की आचार संहिता का पालन करें ताकि उनके समाचारों से बेवजह और बिना ठोस सबूत के किसी की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को नुकसान न हो और न ही समाज में अराजकता और अशांति फैले।
सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वाह ही सार्थक पत्रकारिता है।
पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहा जाता है। इसने लोकतंत्र में यह महत्चपूर्ण स्थान अपने आप हासिल नहीं किया है बल्कि सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा दिया है। लोकतंत्र तभी सशक्त होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति अपनी सार्थक भूमिका निर्वाह करे। पत्रकारिता का उद्देश्य ही यह होना चाहिए कि वह प्रशासन और समाज के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निर्वाह करे।
समय के साथ पत्रकारिता का मूल्य बदलता गया है। इतिहास पर नजर ड़ालें तो स्वतंत्रता के पूर्व की पत्रकारिता का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्ति ही लक्ष्य था। स्वतंत्रता के लिए चले आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता ने अहम और सार्थक भूमिका निभाई है। उस दौर में पत्रकारिता ने पूरे देश को एकता के सूत्र में बांधने के साथ साथ पूरे समाज को स्वाधीनता की प्राप्ति के लक्ष्य से जोड़े रखा।
आजादी के बाद निश्चित रूप से इसमें बदलाव आना ही था। आज इंटरनेट और सूचना अधिकार ने पत्रकाकारिता को बहु आयामी और अनंत बना दिया है। आज कोई भी जानकारी पलक झपकते उपलब्ध कराई जा सकती है। पत्रकारिता वर्तमान समय में पहले से कई गुना सशक्त, स्वतंत्र और प्रभावकारी हो गया है। अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता की पहुँच का उपयोग सामाजिक सरोकारों और समाज की भलाई के लिए हो रहा है लेकिन कभी कभार इसका दुरुपयोग भी होने लगा है।
आर्थिक उदारीकरण का प्रभाव भी पत्रकारिता पर खूब पड़ा है। विज्ञापनों से होनेवाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को एक व्यवसाय बना दिया है। और इसी व्यावसायिक दृष्टिकोण का नतीजा यह हो चला है कि उसका ध्यान सामाजिक जिम्मेदारियों से कहीं भटक गया है। आज पत्रकारिता मुद्दा के बदले सूचनाधर्मी होता चला गया है। इंटरनेट एवं सोशल मीडिया की व्यापकता के चलते उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इसके कुछ उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस माध्यम का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि इस पर अंकुश लगाने की बहस छिड़ जाती है। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता को स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए। पत्रकारिता का हित में यही है कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक जिम्मेदारी निर्वाह के लिए ईमानदारी से निर्वहन करती रहे।
पत्रकारिता और पत्रकार Patrakarita Aur Patrakar
अब तक हमने जान लिया है कि पत्रकारिता एक ऐसी कला है जिसे शब्द और चित्र के माध्यम से पेश किया जाता है। इसे आकार देनेवाला पत्रकार होता है। ऊपर से देखने से यह एक आसान काम लगता है लेकिन यह उतना आसान नहीं होता है। उस पर कई तरह के दबाव हो सकते हैं। अपनी पूरी स्वतंत्रता के बावजूद उस पर सामाजिक और नैतिक मूल्यों की जवाबदेही होती है।
लोकतंत्र में पत्रकारिता को चौथा स्तंभ माना गया है। इस हिसाब से न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका जैसे तीन स्तंभ को बांधे रखने के लिए पत्रकारिता एक कड़ी के रूप में काम करती है। इस कारण पत्रकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उसके सामने कई चुनौतियाँ होती है और दबाव भी। सामाजिक सरोकारों को व्यवस्था की दहलीज तक पहुँचाने और प्रशासन की जनहितकारी नीतियों तथा योजनाओं को समाज के सबसे निचले तबके तक ले जाने के दायित्व का निर्वहन करना पत्रकार और पत्रकारिता का कार्य है।
एक समय था भारत में कुछ लोग प्रतिष्ठित संस्था एवं व्यवस्था को समाज के विकास में सहायक नहीं समझते थे। यह लोग अपने नए विचारों के प्रचार प्रसार के लिए पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करते थे। यह उनकी प्रकृति एवं प्रवृत्ति को लोगों तक पहुँचाने का माध्यम बना था। तकनीकी विकास एवं उद्योग एवं वाणिज्य के प्रसार के कारण एक दिन यह एक कमाऊ व्यवसाय में परिवर्तित हो जाएगा की बात उन्होंने सपनों में भी नहीं सोचा था। समाज के कल्याण, नए विचार के प्रचार प्रसार के लिए पत्रकारिता को समर्पित माना जाता था। यह एक दिन पेशा में बदला जाएगा और इसके लिए डिग्री, डिप्लोमा के पैमाने पर योग्यता एवं दक्षता मापा जाएगा यह कोई सोचा भी नहीं होगा।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में पत्रकारिता भाव की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक माध्यम के रूप में स्वीकृत है। इसलिए पत्रकारिता या मीडिया को राष्ट्र का चौथा स्तंभ कहा जा रहा है। लेकिन खुली हवा के अभाव में इसका विकास भी अवरूद्ध हो सकता है।
आजादी के बाद लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत आगे बढ़ने के कारण समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन, प्रसारण में वृद्धि हुई है। इसका सामाजिक सरोकार होने के बावजूद यह एक उद्योग के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। पत्रकारिता ने एक विकसित पेशा के रूप में शिक्षित युवाओं को आकर्षित किया है। देश में जिन कुछ क्षेत्रों में प्रवृत्ति एवं वृत्ति यानी पेशा में मिलान एवं जुड़ाव की आवश्यकता है उनमें से पत्रकारिता अन्यतम है।
पत्रकारिता के लिए किताबी ज्ञान की तुलना में कुशल साधना की जरूरत अधिक होती है। क्योंकि यह एक कला है। साधना के बल पर ही कुशलता हासिल किया जा सकता है। किताब पढ़कर डिग्री तो हासिल की जा सकती है लेकिन कुशलता के लिए अनुभव की जरूरत होती है। इसके बावजूद चूंकि यह अब पेशे में बदल चुकी है इसलिए योग्यता का पैमाना विचारणीय है। उस प्राथमिक योग्यता एवं सामान्य ज्ञान के लिए इस विषय में कुछ सामान्य नीति नियम जानना और समझना अत्यंत जरूरी है।
एक बात और अतीत में जितने भी पत्रकारों ने श्रेष्ठ पत्रकार के रूप में ख्याति प्राप्त की है उन्होंने किसी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता विषय में कोई डिग्री या डिप्लोमा हासिल नहीं किया है। उन्होंने प्रवृत्ति के आधार पर और साधना के बल पर पत्रकारिता के क्षेत्र में शीर्ष स्थान हासिल किया है।
पत्रकारिता कर्म Patrakarita Karm
प्रारंभिक अवस्था में जब पत्रकारिता को एक उद्योग के रूप में नहीं गिना जाता था तभी पत्रकारिता को एक पेशा या कर्म के रूप में नहीं समझा जाता था। जब डाक एवं तार, परिवहन व्यवस्था में विकास नहीं हुआ था, विज्ञापन से सामान्य आय हुआ करता था, शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ था तब एक सप्ताह में या पंद्रह दिन में एकबार एक समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं का एक संस्करण प्रकाशित करने का कुछ लोगों में जुनून था। कुछ खास नीति एवं आदर्श के प्राचार हेतु एवं सीमित लक्ष्य हासिल के लिए पत्रकारिता को एक माध्यम समझकर कुछ लोग इसके लिए असीम शक्ति एवं समय लगा देते थे। उन लोगों ने यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका जुनून एक दिन कमाऊ व्यवसाय बन जाएगा। तकनीकी विकास, परिवहन व्यवस्था में विकास, उद्योग एवं वाणिज्य के प्रसार के कारण आज यह एक उद्योग बन चुका है। पत्रकारिता आज की स्थिति में केवल प्रवृत्ति या जुनून न होकर एक पेशा बन गया है। जिसके हृदय में समाज के प्रति संवेदना का भाव है और समाज का कल्याण चाहता है और नए विचार का प्रचार प्रसार करना चाहता है तो वह इस पेशे से जुड़ सकता है। दूसरी बात यह कि आज की स्थिति में हर क्षेत्र में चुनौती है। पत्रकारिता में भी पत्रकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके वर्तमान में पत्रकारिता एक पेशा या कर्म बन चुका है। यह एक पेशा में बदला चुका है और इसके लिए विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा औपचारिक डिग्री, डिप्लोमा प्रदान किया जा रहा है।
पत्रकार की योग्यता और उत्तरदायित्व
समाचार पत्र-पत्रिकाएँ हो या अन्य माध्यम में कार्य कर रहे पत्रकारों को दुहरी भूमिका निर्वाह करनी पड़ती है। उसे अपने स्तर पर समाचार भी संकलन करना होता है और उसे लिखना भी पड़ता है। समाचारों के संकलन, व्याख्या और प्रस्तुतीकरण के लिए पत्रकार में गुप्तचर, मनोवैज्ञानिक और वकील के साथ साथ एक अच्छे लेखक के गुण होने चाहिए। प्रत्येक पत्रकार को अपने समाचार का क्षेत्र निर्धारित कर लेना चाहिए ताकि विशेषता हासिल होने पर वह समाचार को सही ढंग से पेश कर सकता है। पत्रकार में कुछ गुण ऐसे होने चाहिए जो उसे सफल पत्रकार बना सकता है उसमें सक्रियाता, विश्वासपात्रता, वस्तुनिष्ठता, विश्लेषणात्मक क्षमता और भाषा पर अधिकार।
सक्रियता
एक सफल पत्रकार के लिए अत्यंत जरूरी है कि वह हर स्तर पर सक्रिय रहे। यह सक्रियता उसे समाचार संकलन और लेखन दोनों में दृष्टिगोचार होनी चाहिए। सक्रियता होगी तो समाचार में नयापन और ताजगी आएगी। अनुभवी पत्रकार अपने परिश्रम और निजी सूत्रों से सूचनाएँ प्राप्त करते हैं और उन्हें समाचार के रूप में परिवर्तित करते हैं। वह पत्र और पत्रकार सम्मानित होते हैं जिसके पत्रकार जासूसों की तरह सक्रिय रहते हैं और अपने संपर्क सूत्रों को जिंदा रखते हैं।
विश्वासपात्रता
विश्वासपात्रता पत्रकार का ऐसा गुण है जिसे प्रयत्नपूर्वक प्राप्त किया जा सकता है। संपर्क सूत्र से पत्रकार को समाचार प्राप्त होते हैं। पत्रकार को हमेशा उसका विश्वासपात्र बने रहने से ही समाचार नियमित रूप से मिल सकता है। संपर्क सूत्र हमेशा यह ध्यान रखता है कि उसका जिस पत्रकार के साथ संबंध है वह उसके विश्वास को कायम रखता है या नहीं। अगर सूत्र का संकेत देने से उस व्यक्ति का नुकसान होता है तो उसे कभी भी उससे संपर्क नहीं रखना चाहेगा।
वस्तुनिष्ठता
वस्तुनिष्ठता का गुण पत्रकार के कर्तव्य से जुड़ा है। पत्रकार का कर्तव्य है कि वह समाचार को ऐसा पेश करे कि पाठक उसे समझते हुए उससे अपना लगाव महसूस करे। चूंकि समाचार लेखन संपादकीय लेखन नहीं होता है तो लेखक को अपनी राय प्रकट करने की छूट नहीं मिल पाती है। उसे वस्तुनिष्ठता होना अनिवार्य है। लेकिन यह ध्यान रखना होता है कि वस्तुनिष्ठता से उसकी जिम्मेदारी भी जुड़ी हुई है। पत्रकार का उत्तरदायित्व की परख तब होती है जब उसके पास कोई विस्फोटक समाचार आता है। आज के संदर्भ में दंगे को ही लें। किसी स्थान पर दो समुदायों के बीच दंगा हो जाता है और पत्रकार सबकुछ खुलासा करके नमक-मिर्च लगाकर समाचार पेश करता है तो समाचार का परिणाम विध्वंसात्मक ही होगा। ऐसी स्थिति में अनुभवी पत्रकार अपने विवेक का सहारा लेते हैं और समाचार इस रूप से पेश करते हैं कि उससे दंगाइयों को बल न मिले। ऐसे समाचार के लेखन में वस्तुनिष्ठता और भी अनिवार्य जान पड़ती है।
विश्लेषण क्षमता
पत्रकार में विश्लेषण करने की क्षमता नहीं है तो वह समाचार को रोचक ढंग से पेश नहीं कर पाता है। आज के पाठक केवल तथ्य पेश करने से संतुष्ट नहीं होता है। समाचार का विश्लेषण चाहता है। पाठक समाचार की व्याख्या चाहता है। समाचार के साथ विश्लेषण दूध में पानी मिलाने की तरह गुंथा हुआ रहता है। लेकिन व्याख्या में भी संतुलन होना चाहिए। पत्रकार की विश्लेषण क्षमता दो स्तर पर होता है – समाचार संकलन के स्तर पर और लेखन के स्तर पर। समाचार संकलन में पत्रकार की विश्लेषण क्षमता का उपयोग सूचनाओं और घटनाओं को एकत्र करने के समय होता है। इसके अलावा पत्रकार सम्मेलन, साक्षात्कार आदि में भी उसकी यह क्षमता उपयोग में आता है। दूसरा स्तर लेखन के समय दिखाई देती है। जो पत्रकार समाचार को समझने और प्रस्तुत करने में जितना ज्यादा अपनी विश्लेषण क्षमता का उपयोग कर सकेगा, उसका समाचार उतना ही ज्यादा दमदार होगा। इसे व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग भी कहा जाता है।
उदाहरण के लिए, सीधी खबर है कि भारत सरकार ने किसानों का कर्ज माफ करने का निर्णय लिया है। योजना लागू करने की तिथि की घोषणा अभी नहीं की गई है। किंतु पत्रकार अपने स्रोतों से पता करता है कि यह कर्ज माफी किस दबाव के तहत किया जा रहा है और इससे देश की अर्थ व्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा। समाचार का यह रूप व्याख्यात्मक रिपोर्टिंग का रूप होगा।
चुनावी वादा निभाने किसानों का कर्ज माफ
भारत सरकार ने किसानों के विकास का ध्यान रखते हुए उनका कर्ज माफ करने का निर्णय लिया है। इससे राजकोष पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। सूत्रों के अनुसार यह निर्णय पार्टी द्वारा चुनाव के समय किए गए वायदे को पूरा करने के लिए लिया गया है।
भाषा पर अधिकार
समाचार लेखन एक कला है । ऐसे में पत्रकार को लेखन कला में माहिर होना होगा। उसे भाषा पर अधिकार होना चाहिए। इसके साथ ही पत्रकार को यह भी ध्यान रखना होगा कि उसके पाठक वर्ग किस प्रकार के हैं। समाचारपत्र में अलग अलग समाचार के लिए अलग अलग भाषा दिखाई पड़ते हैं। जैसे कि अपराध के समाचार, खेल समाचार या वाणिज्य समाचार की भाषा अलग अलग होती है। लेकिन उन सबमें एक समानता होती है वह यह है कि सभी प्रकार के समाचारों में सीधी, सरल और बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें एक बात और है कि पत्रकार को एक क्षेत्र में अपनी विशेषज्ञता निर्धारित कर लेना चाहिए। इससे उससे संबंधित शब्दावली से पत्रकार परिचित हो जाता है और जरूरत पड़ने पर नए शब्दों का निर्माण करना आसान हो जाता है। इसबारे में विस्तृत रूप से आगे चर्चा की गई है।
पत्रकारिता के क्षेत्र
आज की दुनिया में पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। शायद ही कोई क्षेत्र बचा हो जिसमें पत्रकारिता की उपादेयता को सिद्ध न किया जा सके। इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि आधुनिक युग में जितने भी क्षेत्र हैं सबके सब पत्रकारिता के भी क्षेत्र हैं, चाहे वह राजनीति हो या न्यायालय या कार्यालय, विज्ञान हो या प्रौद्योगिकी हो या शिक्षा, साहित्य हो या संस्कृति या खेल हो या अपराध, विकास हो या कृषि या गाँव, महिला हो या बाल या समाज, पर्यावरण हो या अंतरिक्ष या खोज। इन सभी क्षेत्रों में पत्रकारिता की महत्ता एवं उपादेयता को सहज ही महसूस किया जा सकता है। दूसरी बात यह कि लोकतंत्र में इसे चौथा स्तंभ कहा जाता है। ऐसे में इसकी पहुँच हर क्षेत्र में हो जाता है।
Published by : Sabnam Pustak Mahal
Book : Patrakarita Ke Siddhant